स्थापना |
पुष्पांजलि - जयमाला: दोहा |
श्री गुरु के चरणों में, मैं झुका रहा अपना माथा । यह जैनागम का सुधा कलश जो बिखराते हैं गली गली । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने अत्र अवतर 2 तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इन अष्ट द्रव्य में प्रथम द्रव्य जो जल है । हम अर्पित करते इसी भाव को लेकर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने जन्म जरा मृत्यु जलं निर्व0 स्वाहा । है द्रव्य दूसरा जिसका नाम कि चन्दन । अर्पित करते हम इसी भाव को लेकर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने चन्दन निर्व0 स्वाहा । जो द्रव्य तीसरा कहा जिनागम अक्षत । यह पुंज चढ़ाता इसी भाव में खोकर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने अक्षतं निर्व0 स्वाहा । जो द्रव्य है चैथा पुष्प् प्रतीक सुगंधित । मैं पुष्प् चढ़ाऊॅं यही भावना लेकर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने पुष्पं निर्व0 स्वाहा । है द्रव्य पाॅंवां चरू बलि नैवेद्यनामी । यह अर्पित करते इसी भाव को लेकर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने नैवेद्य निर्व0 स्वाहा । है छटा द्रव्य जो दीप रूप् कहलाता है । जो जले दीप से तत्क्षण में नश जाता । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने दीपं निर्व0 स्वाहा । है द्रव्य सातवीं धूप सुगन्धी वाली । यह धूप खेय मम भाव यही है आला । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने धूपं स्वाहा । है द्रव्य आठवां मंगलमय ये फल है । अर्पण करते यह इसी भाव से हम भी । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने फलं निर्व0 स्वाहा । जल चन्दन अक्षत पुष्प् सुगंधित लेकर । ले के फल उत्तम अध्र्य बना थाली भर । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने अध्र्य निर्व0 स्वाहा । यू भक्ति से, गुणगाय, गुरु पद की पूजा करूॅं । |
ज्ञान ध्यान धारी गुरू मैं वन्दू त्रिकाल । जै जै अमित सागर गुरू देव हमारे । जै ध्यान मुद्राधारी की मैं वन्दना करूं। जै जै गुलाबचन्द के ही नन्द कहाये । जै नयनों के सितारों की मैं वन्दना करूं । जै दीक्षा गुरू धर्म सागर हैं आपके । जै प्रज्ञा श्रमण बालयोगी की वन्दना करूं । जै मूल उत्तर गुणों के धारी हो आप । जै मोक्ष महल राही की मैं वंदना करू । जै बोलती माटी को रचा है आपने । ऐसे आगम प्रवीण की मैं वन्दना करूं । जै धीर वीर आप बाल ब्रह्मचारी हो । ऐसे महा तपस्वी की मैं वन्दना करूं । हे नाथ एक बार चरण धूलि बना लो । बस यही एक आपसे मैं प्रार्थना करूं । ओम ह्रीं श्री अमित सागर मुने पूर्णार्घ निर्व0 स्वाहा |
दोहा:तब गुण सिन्धु अगाध है पा ना सकूं गुरु पार । |